ध्यान दो सरकार ! लेकसिटी की पहाड़िया धड़ल्ले से छलनी हो रही है,एक दूजे पर डाल रहे है सारे अफसर मिले हुए
1 min readदुनिया के सबसे खूबसूरत शहर में शुमार लेकसिटी बहुत जल्दी अपनी पहचान खो देगा। इसकी सबसे बड़ी कारण नेता, अफसर और बिल्डर्स की जुगलबंदी है। पहाड़ियां, झीलंे और धरोहरें ही उदयपुर की खूबसूरती की पहचान है। चारों तरफ अरावली की पहाड़ियों से आच्छादित इस शहर में लम्बे समय से लगातार पहाड़ों की कटिंग हो रही है, लेकिन कोई ध्यान देने वाला नहीं है, कभी कभार शिकायत भी होती है तो अधिकारी जांच करने की बात कहकर पल्ला झाड़ लेते है। चलिए आज आपको इसका ताजा उदाहरण भी दिखा देते हैं।
उदयपुर से झाड़ोल हाईवे के बीच स्थित सेठजी की कुण्डाल इलाके में हरियाली से लखदख सबसे उंची पहाड़ी की चोटी को इन दिनों मशीनों से छलनी किया जा रहा है। शिकायत मिलने पर जब मीडिया की टीमें मौके पर पंहुची और पड़ताल की तो सामने आया की पहाड़ी को पर्यटन ईकाई के लिए किसी संस्थान को नामांतरित किया गया है,जबकि भूमि धारक अभी भी युआईटी ही है। दिन रात यहां पर युद्ध स्तर पर पहाड़ कटाई का काम चाल रहा है और बहुत बड़ा कटा हुआ हिस्सा अब तो हाईवे से ही साफ दिखाई देता है लेकिन लगता है जिम्मेदारों की नजर इस पर नहीं पड़ी या फिर वह आंखें मुंदे ही रखना चाहते हैं। इसी मसले पर एक अखबार में छपी खबर की ओर आपका ध्यान आकर्षित करते हैं,,,,,, ‘‘अरावली के मूल स्वरूप के साथ छेड़छाड़, ऊंचे पहाड़ पर चल रहा है पीला पंजा’’ टाईटल से छपी इस खबर में न सिर्फ छलनी होती पहाड़ी को दिखाया गया है, बल्की अधिकारिक वर्जन भी लिए गए है। जिसमें युआईटी के तहसीलदार विमलेंद्र सिंह राणावत ने साफ किया हैकि उन्हें भी शिकायत मिली है, जांच करके आगे कार्रवाई की जाएगी।
लेकिन आज तक न तो कोई जांच हुई है न हीं मौके पर कोई कार्रवाई हुई है। इस पूरे मसले पर जब हमने राणावत जी से बात की तो दो दिन तक तो वें सुबह आना, शाम को आना कहकर बात टालते रहे और बाद में कह दिया यह मसला मेरे अधिकार क्षेत्र का नहीं है आप उपरी अधिकारियों से बात करें, वहीं जब उपरी अधिकारियों तक भी हमारी टीम पंहुची तो उन्होंने भी तहसीलदार पर मसला डालते हुए इस मामले से ही कन्नी काट दी। उनका जवाब नहीं देना क्या साबित करता है यह तो सभी दर्शक समझ ही गए होंगे, लेकिन जब गरीब और बिना रसूख का शख्स परमिशन के बिना छोटा सा भी निर्माण करवा देता है और वह अवैध रूप से काम शुरू कर देते है, तब यहीं अधिकारी अपने साजो सामान लेकर निर्माण को ध्वस्त करने चले जाएंगे और अवैध निर्माण पर कार्रवाई करने पर वाहवाही भी लुटेंगे, लेकिन यहां इन सबकी बोलती क्यूं बंद हो जाती है,चर्चाए आम तो यह भी हैकि अधिकारी बिना चैक, जेक के काम नहीं करते है और उदयपुर की युआईटी तो इस मामले में काफी प्रसिद्धि पा चुकी है।
जब यहां के एक दलाल को लाखों की रिश्वत राशि के साथ पकड़ा गया था, जिसके तार उपरी लेवल तक जुड़े थे, उस घटना के बाद मानो यूआईटी में सन्नाटा छा गया कई तो छुट्टियों पर चले गए और कईयों ने तो बहुत कुछ इधर उधर कर दिया। खैर वह मामला जैसे ही ठण्डे बस्ते में गया, यह विभाग भी पूर्व की तरह चलने लग गया और इस बीच पर्यटन ईकाई के नाम से स्वीकृत इस पहाड़ी की चोटी छलनी होने लग गई। इस पूरे मसले पर जब हमने खातेदार हेमंत सुयेल से बात की तो उन्होंने साफ किया पेड़ – पौधे लगा रहे हैं मेरी जमीन पर मैं कुछ भी करूं प्लांटेशन की परमिशन ले रखी है। जब उनसे स्वीकृति की कॉपी मांगी तो उन्होंने हमे यह कहते हुए कॉपी देने से इंकार कर दिया की हम कौन होते है यह जानकारी लेने वाले।
इस पहाड़ी के खातेदार हेमेंद्र सुयल का कहना हैकि उन्होंने जिला कलेक्टर से परमिशन लेकर पहाड़ी पर प्लांटेशन का काम किया है, वहीं हमे स्वीकृति पत्र देने से मना करते हुए पूछा की हम कौन होते है परमिशन मांगने वाले, तो हम सुयल साहब को बता देकि मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है। जनता की बात सरकार तक पंहुचाने के बीच के सेतु का काम मीडिया का होता हैं, हर गलत सही को उजागर करने का काम मीडिया का होता है और उदयपुर में कुछ भी गलत हो रहा है, अधिकारी बिकाऊ है, रसूखदार की मनमर्जी चल रही है तो यह खुलासा करने का काम भी मीडिया का ही है।
जो काम हम पूरी शिद्धत के साथ करते आए हैं और आगे भी करते रहेंगे। वहीं युआईटी अधिकारियों की चुप्पी इस बात को भी साबित करती है कि हेमेंद्र सुयल का रसूख कितना बड़ा होगा, सरेआम सेठजी की कुण्डाल की सबसे ऊंची पहाड़ी को छलनी बिना अधिकारियों की मिलीभगत के तो किया ही नहीं जा सकता अब युआईटी को चेयरमैन और ट्रस्टियों की सख्त आवश्यकता है वे ही लोग इन लाल फिताशाहों की जुगाली पर नकेल लगा सकते है और छलनी होती पहाड़ियों को कटने से बचा सकते है, भले ही सांसद हो या विधायक सभी अरावली की पहाड़ियों की रक्षा के लिए अपनी बात सदनों में रख चुके है लेकिन थोड़े से लालच के लिए इन लाल फिताशाहों ने इन्हें खत्म करने में कोई कसर नही छोड़ी।