सावधान हो जाओ – बरसाती मेंढक बाहर आ चुके है ! (मिशन – चुनाव – 2023, राजस्थान)
1 min readसाल 2023 के अंत में राजस्थान की सोलहवीं विधानसभा के आम चुनाव संभावित है। प्रदेष में भाजपा और कांग्रेस दोनो ही बड़ी पार्टियां है जो सत्ता में रहीं या विपक्ष में बैठकर अपनी आवाज को बुलंद किया है। यहां की जनता भी बड़ी सयानी है, पांच साल में एक बार विपक्षी पार्टी को मौका दे ही देती है और इसी गठजोड़ में लम्बे समय से राजस्थान की सियासत चलती आ रही है। अब नवम्बर तक राजस्थान की जनता को बहुत कुछ देखना है।
चुनावी सभाएं, एक दूसरे पर कटाक्ष, धर्म और जाति के नाम पर उकसाने वाले भड़काऊ भाशण आदि प्रदेषवासियों के मस्तिश्क से सोचने और समझने की षक्ति को ही यह वोटो की भिखारी कम कर देंगे,,,,, प्रदेष की सियासत में मेवाड़ संभाग का बहुत बड़ा योगदान रहा है। यहां की 28 सीटों ने सत्ता को बनाने में हर बार महत्वपूर्ण भुमिका निभाई है।
एक तरफ जहां विपक्षी में बैठी भाजपा इसीलिए थोड़ी निष्चिंत है कि जनता को वैसे ही तख्तापलट करना है वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस को विष्वास है कि जनता को मिली ‘‘महंगाई से राहत’’ फिर से सरकार ले आएगी। सुबे के मुखिया अषोक गहलोत के लगतार मेवाड़ दौरों से लग रहा हैकि वह पहले मेवाड़ को जीतना चाहते है।
माना भी जाता रहा हैकि जिसने मेवाड़ जीत लिया राजस्थान उसी का। उनको लगता है कि यह राह इसलिए भी आसान हो गई है कि मेवाड़ भाजपा के कद्दावर और सर्वमान्य नेता गुलाबचंद कटारिया अब सक्रिय राजनीति में नहीं है और उनके जाने के बाद पार्टी में पड़ी फूट कहीं न कहीं कांग्रेस को फायदा पंहुचा सकती है।
यह बात काफी हद तक कांग्रेस और भाजपा के कद्दावर भी मानते है। हाल ही भाजपा ने चितौड़गढ़ सांसद सीपी जोषी को प्रदेष भाजपा की कमान तो सौंप दी, लेकिन महामहिम गुलाबचंद कटारिया जैसी मजबूत पकड़ करने के लिए अभी उन्हें समय लगेगा, यह राजनीतिक विष्लेशकों का मानना है। भाजपा कई गुटों में बंट चुकी है, जिसमें पूर्व प्रदेषाध्यक्ष सतीष पुनिया, अंदरूनी रूप से गुलाबचंद कटारिया और अब सीपी जोषी गुट। टिकिट एक को ही मिलेगा लेकिन इसकी आस तो सभी लगा सकते है, और आस लगाने वालों की संख्या दर्जनों में हो यह मेवाड़ में कई जगहों पर पहली बार ही होगा क्यूंकि कटारिया जी की मंजूरी के बिना मेवाड़ भाजपा का पत्ता भी नहीं हिल सकता था।
लेकिन अब उनके महामहिम बनने के बाद मेवाड़ में कई दिषाओं से पार्टी के हवाएं तुफानी हो चुकी है, जो नफरत और उपलब्धियों के वेग से मंजिल तक पंहुचने की कवायदों में लगी हुई है। वहीं इस बार कांग्रेस को लगता है कि अब भाजपा के गढ़ में सैंध मारी जा सकती है। इसलिए कोई स्वघोशित सर्वे में टॉप कर रहा है, तो कोई पोस्टर छाप नेता बनकर यह साबित करने में लगा है कि ….वो ही था ? जिसे जनता अब तक पहचान नहीं पाई। कोई कभी जयपुर तो कभी दिल्ली बड़े नेताओं की आंखों के सामनें बार – बार आने की जुगत में लग गया है तो कोई इस भय से चुप्पी साधे हुए है कि चलेगी पायलट की या गहलोत की। लेकिन यहां यह बात मानना बहुत जरूरी है कि भाजपा की कार्यषैली के सामने कांग्रेस की कार्यषैली बहुत बोनी है और कांग्रेस को ताजपोषी के लिए एक सुनियोजित रणनीति बनानी पड़ेगी जो अभी के दावेदारों में किसी के पास भी नहीं है।
टिकिट मांगने वालों में से एक भी यह दावा कर ले की ‘‘मौका नहीं मिला तो भी जनता की सेवा करता रहेगा’’ तो मान लिया जाएगा की वह वाकई में जनता का प्रतिनिधि है, वरना बरसात हो या चुनाव मेंढकों का टर्रटर्राना लगा रहेगा, और इसी मौकापरस्त राजनीति पर किसी ने क्या खूब लिखा है, कि ‘‘बरसाती मेंढक, बस दो दिन टर टर्राते है।
बारिष के जाते ही न जाने कहां खो जाते है। यूं तो हवा पानी वहीं रहती है,फिर क्यूं बाकी दिन अकुलाते हैं। सावन की रिमझिम, बुदों की टिप – टिप। मृदुल मनोहर मौसम में,नाहक षोर मचाते है। कोई जरा बताए इनको, कोलाहल से किले नहीं गिरा करते है , जो टिकते है वो ही महल नया बनाते है।