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सूरजपोल द्वार व चौराहे को आवागमन की दृष्टि से पूर्ववत मूल स्वरुप में रखा जाये :प्रो माथुर !

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उदयपुर 6 जुलाई- उदयपुर की सुरक्षा को देखते हुए महाराणा प्रताप सिंह द्वितीय सन 1751 से महाराणा राजसिंह द्वितीय 1761 के कार्यकाल में मेवाड़ प्रधान ठाकुर अमरचंद बड़वा ने उदयपुर शहर कोट के साथ 10 द्वार वास्तु व ज्योतिष के अनुसार तत समय अठारह लाख सात हज्जार तीन सो रुपए में निर्माण करवाकर शहरवासियो को सुरक्षा प्रदान की जिसमे ऐतिहासिक सूरजपोल उदयपुर का प्रवेश द्वार रहा। आजादी के पश्चात से शहर के विकास व विस्तार के साथ-साथ परकोटो को तोडा गया लेकिन ऐतिहासिक धरोहरों में इन पोलो को सुरक्षित रखा गया मगर वर्तमान समय में ऐतिहासिक धरोहरों को नज़रअंदाज़ कर उन्हें तोड़ कर उदयपुर को नया स्वरुप देने की सोच उदयपुर के मूल स्वरुप को विकृत करना इतिहास सम्मत प्रतीत नहीं होता उक्त विचार मेवाड़ इतिहास परिषद् , उदयपुर के अध्यक्ष इतिहासकार प्रो. गिरीश नाथ माथुर ने ऐतिहासिक सूरजपोल द्वार के क्षतिग्रस्त होने की बात पर यहाँ चिंता व्यक्त करते हुए कहा। प्रोफेसर माथुर ने कहा की उदयपुर का इतिहास व परम्पराये विश्व प्रसिद्द है यदि ऐतिहासिक धरोहरो की सुरक्षा व्यवस्था नहीं की जाती है तो पर्यटन व्यवसाय प्रभावित होगा। सूरजपोल का यथावत रहना जन सामान्य के लिए ही नहीं बल्कि भावी पीढ़ी को उदयपुर के गौरवमय इतिहास से परिचित रखना आवश्यक। प्रोफेसर माथुर ने कहा की सूरजपोल का जीणोद्धार उसके मूल स्वरुप होना चाहिये एवं उसके चौराहे को आवागमन की दृष्टि से पूर्व की भांति ही रखा जाये।
परिषद् के महासचिव डॉ मनोज भटनागर,संजोजक शिरीष नाथ माथुर, इतिहासकार डॉ जम्नेश कुमार ओझा ,डॉ राजेंद्र नाथ पुरोहित,डॉ गोविन्द लाल मेनारिया ,डॉ आजात शत्रु सिंह शिवरती,मनोहर लाल पुरोहित ने प्रोफेसर माथुर के विचार पर सहमति जताई।

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