ट्रेडिशन टू ट्रेंड फैशन-शो “पेरावो” से राजस्थान साहित्य महोत्सव “अडावळ” का समापन
1 min readएक माह तक आयोजित महोत्सव में राजस्थान की कला, साहित्य और संस्कृति से रूबरू होने का अवसर
उद्घाटन सत्र में कला एवं संस्कृति मंत्री अर्जुन राम मेघवाल मुख्य अतिथि रहे
ऑफलाइन – ऑनलाइन एक माह तक आयोजित कार्यक्रम को सवा लाख से अधिक लोगों ने देखा
वर्चुअल प्लेटफार्म के माध्यम से भारत समेत 12 देशों व 1.25 लाख से अधिक लोगों की पहुँच के साथ सम्पन्न हुआ राजस्थान साहित्य महोत्सव ‘आडावळ’
अगले वर्ष फिर से लेकर आएगा लोककला, साहित्य, संस्कृति के रंग “अडावळ”
ट्रेडिशन टू ट्रेंड फैशन-शो पेरावो में दिखी राजस्थानी वेशभूषाओं की झलक
कैटवॉक में दिखी राजस्थानी आदिवासी परिधानों की गाथा
रैंप पर एक के बाद एक ठेठ राजस्थानी आदिवासी पौशाक धारण किए युवक-युवतियां की कैट वॉक का जलवा देखते ही बना।
राजस्थान साहित्य महोत्सव “अडावळ” के निदेशक डॉ शिवदान सिंह जोलावास ने बताया कि विगत एक माह से संचालित “अडावळ महोत्सव” का समापन रविवार को राजस्थान साहित्य अकादमी परिसर के मेजर शैतान सिंह सभागार में हुआ । कार्यक्रम की अध्यक्षता राजस्थान फाउडेंशन के चेयरमेन धीरज श्रीवास्तव, मुख्य वक्ता प्रो. कल्याण सिंह शेखावत तथा मुख्य अतिथि रूप में आमंत्रित मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बतौर ऑनलाइन अपना संदेश प्रदान किया । मुख्यमंत्री ने बधाई देते हुए कहा कि अडावळ के माध्यम से राजस्थान की संस्कृति को आगे बढ़ाने की कवायद प्रशंसनीय है। आदिवासी बालिकाओं को उनके पारंपरिक परिधानों में फैशन-शो के माध्यम से रूबरू कराने का जज्बा अतुलनीय है। महोत्सव के अंतिम दिन ट्रेडिशन टू ट्रेंड फैशन शो “पेरावो” में रैंप पर आदिवासी बालिकाओ ने पारंपरिक परिधानों से आदिवासी राजस्थानी संस्कृति से रूबरू कराया ।
फैशन शो “पेरावो” की संयोजिका डॉ. डोली मोगरा ने बताया कि मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय के डिपार्टमेंट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी एंड डिजाइनिंग के सहयोग से आयोजित फैशन शो में आदिवासी क्षेत्रों के परिधानों एवं उनके पहनावे से पारंपरिक संस्कृति की झलक देखने के साथ आदिवासी क्षेत्र के बालक – बालिकाओं में आत्मविश्वास जगाने के लिए शो का आयोजन किया गया। आदिवासी बालिकाओ ने ट्रेडिशनल और इंडो वेस्टर्न के फ्यूजन के साथ रैंप पर केटवॉक किया । कोविड लॉकडाउन की लंबी अवधि के बाद दर्शकों की मौजूदगी में पैरावो फैशन-शो में प्रतिभागियों का आत्मविश्वास देखते ही बना। युवक-युवतियों के साथ बालक-बालिकों ने अपने हौंसले को जिंदा रखते हुए राजस्थान साहित्य अकादमी के सभागार में कैट वॉककर राजस्थानी पौशाकों को धारण किए जहां सुविवि की छात्राओं ने राजस्थानी संस्कृति को फ्यूजन के तहत रू-ब-रू कराया, वहीं आदिवासी बालिकाओं ने ठेठ आदिवासी पोशाक धारण कर अपनी संस्कृति से अवगत कराया। प्रतिभागियों ने स्वयं के द्वारा तैयार विविध क्षेत्र की राजस्थानी परिधानों को धारण कर रैंप पर अपनी प्रस्तुति से माहौल को न केवल राजस्थानीमय बना दिया बल्कि देश-विदेश में लाइव शो में आदिवासी संस्कृति से ओतप्रोत पोशाकों की झलक देखने को मिली।
कार्यक्रम अध्यक्ष धीरज श्रीवास्तव ने राजस्थान का देश में महत्वपूर्ण स्थान बताते हुए यहां की यहां की कलात्मक रचनाओं ने सांस्कृतिक विरासत को बचाया है। राजस्थानी साहित्य का वृहद संसार है। राजस्थान में शरणागत की रक्षा तथा नारी सम्मान यहां की सँस्कृति की पहचान है ।
मुख्य वक्ता प्रो. कल्याण सिंह शेखावत ने कहा कि महाराणा उदय सिंह जी एवं वीरों की धरती मेवाड़ का इतिहास पहनावा रहन-सहन विश्व में सभी को आकर्षित करता है। हिंदुस्तान की समृद्ध संस्कृति को लॉर्ड मैकाले शिक्षा नीति ने अंग्रेजी मानसिकता का गुलाम बना दिया है। यहां के भाषा के शब्दों की तलवार से भी गहरी एवं प्रभारी है। हमें फिर से अपनी भाषा को सम्मान देते प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में करानी होगी । प्रत्येक राजस्थानी के सहयोग से हम राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाएंगे।
सुर संगम संस्थान की बालिकाओं ने मारी घूमर पर प्रस्तुति तथा कत्थक कत्थक आश्रम की बालिकाओं ने मारे हिवड़ा की प्रस्तुति आकर्षण का केंद्र रही। इस मौके पर स्कूली व कॉलेज बच्चों द्वारा राजस्थानी संस्कृति को लेकर आयोजित चित्र प्रतियोगिता के पुरस्कार दिए समारोह में शहर के गणमान्य मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन राजेंद्र सेन एवं रजनी ने किया।